प्रमुख खगोलशास्त्रियों का योगदान
- वराहमिहिर:
- "पंच सिद्धांतिका" में पाँच प्राचीन खगोल विज्ञान ग्रंथों का संकलन किया।
- "बृहत संहिता" के माध्यम से ज्योतिष और अन्य विषयों पर कार्य किया।
- आर्यभट्ट:
- पृथ्वी की धुरी पर घूर्णन की अवधारणा दी।
- शून्य और पाई (π) की गणना का योगदान।
- सौर मंडल का केंद्र सूर्य होने का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
- ब्रह्मगुप्त:
- "ब्रह्मस्फुट सिद्धांत" में खगोल और गणित पर कार्य।
- नकारात्मक संख्याओं और गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा का उल्लेख।
- भास्कराचार्य II:
- "सिद्धांत शिरोमणि" में ग्रहों की गति और ग्रहणों का विश्लेषण।
- नीलकंठ सोमयाजी:
- "तंत्रसंग्रह" में खगोलीय और गणितीय दृष्टिकोण।
खगोलीय तकनीक और यंत्र
एस्ट्रोलैब: खगोलीय पिंडों की ऊँचाई और दिशा निर्धारित करने में सहायक।
यंत्र: घड़ियाँ, ध्रुवांक, और अन्य उपकरण।
आकाशीय ग्लोब: तारों और नक्षत्रों की स्थिति दर्शाने के लिए।
गणित और त्रिकोणमिति
भारतीय खगोलविदों ने त्रिकोणमिति और गणितीय श्रृंखलाओं पर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
त्रिकोणमिति का उपयोग खगोलीय पिंडों की स्थिति और नेविगेशन में किया गया।
भारतीय खगोल विज्ञान की विरासत
इन योगदानों ने आधुनिक खगोल विज्ञान की नींव रखी।
गणित, खगोल विज्ञान, और अन्य विज्ञानों में इनके योगदान आज भी प्रेरणा देते हैं।